मंथन आजतक 2017 के छठवें सत्र 'नोटबंदी- क्या खोया क्या पाया?' में स्टेट बैंक ऑफ इंडिया की पूर्व चेयरपर्सन अरुंधति भट्टाचार्या ने शिरकत की. इस सत्र का संचालन राजदीप सरदेसाई ने किया.
इस सत्र की शुरुआत करते हुए राजदीप ने अरुंधति से पूछा कि क्या नोटबंदी का फैसला लेने से पहले सरकार ने आपसे संपर्क किया था? अरुंधति ने कहा कि उन्हें भी प्रधानमंत्री के ऐलान के बाद ही पता चला कि नोटबंदी का फैसला हुआ है. वहीं निर्णय सही था या गलत के सवाल पर अरुंधति ने कहा कि किसी भी बड़े फैसले का मूल्यांकन करने के लिए और अधिक समय की जरूरत है.
अरुंधति ने गिनाए नोटबंदी के 3 फायदे
अरुंधति ने कहा कि नोटबंदी के दो-तीन नतीजे सामने हैं, पहला, देश में टैक्स पेयर का रजिस्ट्रेशन बढ़ चुका है. दूसरा, देश में करेंसी सर्कुलेशन 2016 के पहले छोटी करेंसी सिर्फ 16 फीसदी था लेकिन नोटबंदी के बाद यह बढ़कर 28 फीसदी हो चुका है. यह अर्थव्यवस्था के लिए एक बहुत बड़ी बात है. तीसरा, देश में डिजिटलाइजेशन की रफ्तार तेज हो गई है. यदि नोटबंदी के बाद 10 रुपये कार्ड के माध्यम से खर्च हो रहे थे तो अब 300 रुपये खर्च हो रहे हैं. यह भी देश की अर्थव्यवस्था के लिए बड़ी बात है.
टैक्स चोरों ने टैक्स देने की दिशा में उठाया पहला कदम
प्रधानमंत्री ने देश में नोटबंदी का ऐलान करते वक्त कहा कि इससे देश में आतंकवाद पर लगाम लगेगी और कालेधन को पूरी तरह से खत्म कर दी जाएगी. अरुंधति ने कहा कि नोटबंदी के बाद टैक्स पेयर की संख्या बढ़ने से एक बात साफ है कि नवंबर 2016 के पहले जो लोग टैक्स नहीं दे रहे थे उन्होंने टैक्स देने की दिशा में पहला कदम बढ़ाया. हालांकि, अरुंधति ने कहा कि इस कदम से कालेधन पर पूरी तरह से लगाम नहीं लगाया जा सकता. अब जरूरत है कि नोटबंदी की प्रक्रिया में सरकार के पास जो जमा और निकासी के आंकड़े मिले उसकी जांच की जानी चाहिए.
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कालेधन को सफेद करने के लिए हुई नोटबंदी?
अरुंधति ने कहा कि नोटबंदी पर किसी तरह की राजनीतिक प्रतिक्रिया वह नहीं दे सकती हैं. हालांकि उन्होंने दावा किया कि जिस स्तर पर देश में नोटबंदी की प्रक्रिया चलाई गई उसमें देश के बैंकों ने बहुत बड़ा काम किया. इस तरह से देश की करेंसी को कुछ दिनों में बदल पाना आसान काम नहीं था.
आम आदमी मानता है कि नोटबंदी अच्छा फैसला?
अरुंधति का दावा है कि देश में जो लोग टैक्स का भुगतान करते हैं उन्हें नोटबंदी एक अच्छा फैसला लगा. उनका मानना है कि आखिर क्यों देश में कोई टैक्स चोरी करे. अरुंधति ने कहा कि पूरी प्रक्रिया के दौरान हमारी शाखाओं से गांव-गांव से खबर आ रही था. इन खबरों के मुताबिक आम आदमी का यही मानना रहा कि देश में समानांतर अर्थव्यवस्था को रोक लगाना जरूरी था. हालांकि यह रोक लगाने के अलग-अलग तरीके हो सकते.
पूरी तैयारी के साथ होनी थी नोटबंदी
अरुंधति ने कहा कि यदि नोटबंदी का फैसला सुनाने से पहले इसकी बेहतर तैयारी की गई होती तो बैंकों के लिए यह काम आसान होता. अरुंधति के मुताबिक उन्हें इतनी बड़ी संख्या में देशभर में कैश का संचार करने में सुरक्षा और टेक्नोलॉजी समेत कई दिक्कतों का सामना करना पड़ा.
क्यों बीमार हो गए देश के सभी बैंक?
राजदीप ने पूछा कि क्या बैंकों में कैपिटल इंफ्यूजन का केन्द्र सरकार का फैसला ठीक है. वहीं आखिर कैसे बैंकों की स्थिति इतनी खराब होती गई कि आज उसे बचाने के लिए सरकार टैक्स पेयर का पैसा दे रही है. इसपर अरुंधति ने कहा कि देश में कारोबार को बढ़ावा देने के लिए कर्ज देना जरूरी है. वहीं कर्ज देने औऱ लेने में अपना रिस्क शामिल रहता है. महज रिस्क के चलते बैंक किसी को कारोबार बढ़ाने के लिए कर्ज देने से इनकार नहीं कर सकती. वहीं जहां बैंकों को लगता है कि कोई कारोबारी सिर्फ कर्ज न अदा करने के लिए कर्ज लेना चाहती है तो उसे कर्ज नहीं दिया जाता. कंपनियां कर्ज न चुका पाने की स्थिति में कारोबारी कारणों से ही पहुंचती है और बैंकों को इसका बोझ उठाना पड़ता है.